जयतु जय हे पुण्य-भू जय, जयति जय हे ज्ञानधारा।
विश्व में चमके निरन्तर विश्वविद्यालय हमारा।।
हम अटल संकल्प ले अज्ञान से डटकर लड़ेंगे,
देश-दुनियाँ में ध्वजा सद्ज्ञान की लेकर बढ़ेंगे।
ले हुनर हर नर यहाँ से कर्मयोगी दल चलेगा,
पथ चुनें गुरुचिह्न का ज्ञानामृती ‘पाहल’ मिलेगा।
स्नातकों से सीख लेगा आचरण की जगत् सारा।।
विश्व में चमके.…।।१।।
रामगंगा के तटों पै स्वर्ण-सा है ताम्र-पीतल,
रज़ा ग्रन्थागार से नित ज्ञानगंगा सौम्य शीतल।
कण्व आश्रम श्रीभरत से विदुर-कुटिया श्याम से है,
तीर्थ-कूपों की धरा का नाम कल्कि धाम से है।
ढोलकें अमरोही-मीना की अदायें शतप्रकारा।।
विश्व में चमके….।।२।।
है कला-साहित्य भी, अभियान्त्रिकी प्रौद्योगिकी है,
खेल कौशल वार्ता से आर्ष-शिक्षा चहुँमुखी है।
तक्षशिला-विक्रम-नालन्दा-श्रृंखला माहेश्वरी है,
आदिशंकर वैष्णवी, गुरु गोरखी जम्भेश्वरी है।
दयानन्दी गुरुकुलों ने राष्ट्रहित जीवन संवारा।
विश्व में चमके …।।३।।
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जयतु जय हे पुण्य-भूः जय, जगति जयताद् ज्ञानधारा।
विश्वविद्यालय अजस्रं भ्राजतां नो विश्ववारा।।
वयमचलसंकल्पवन्तोऽज्ञानरिपुणा संजयेम,
ज्ञानकेतुमखिलविश्वे करे धृत्वा संचरेम।
कौशलमधिगम्य सम्यक् कर्मयोगीदलं यातु,
गुरोः पथचयने मुदा ज्ञानामृतं ‘पाहल’मवापुः।
अर्चनीयाः मनुजवृन्दैः स्नातकानां सद्विचाराः।।
विश्वविद्यालय अजस्रं….॥१॥
कनकमिव यत्पीतताम्रं रामगङ्गाया उपान्तम्,
‘रज़ा’ इति ग्रन्थालयेन ज्ञानगङ्गं सौम्यशान्तम्।
पौरवेन कण्वाश्रमः विदुरकुटिश्श्रीकृष्णनाम्ना,
तीर्थकूपानां धरा सिद्धास्तथा श्रीकल्किधाम्ना।
‘मीना-अमरोही’ नटाऽत्र ढौलकापि शतप्रकाराः।
विश्वविद्यालय अजस्रं….॥२॥
अत्र साहित्यं कलाभियान्त्रिकी-प्रौद्योगिकी च,
क्रीडाकौशलवार्ताभिः आर्षशिक्षा बहुमुखी च।
तक्षशिला-विक्रम-नालन्दा-शृंखला माहेश्वरी या
आदिशङ्कर-वैष्णवी ‘गुरुगोरखी’ जम्भेश्वरी सा।
राष्ट्रहेतोः जीवनानि गुरुकुलैः सज्जीचकार।
विश्वविद्यालय अजस्रं….॥३॥
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